गड़..ड़..ड़..ड़...ड़..ड़..ड़.. गर्जना घनघोर थी|
तड़..ड़..ड़..ड़..ड़..ड़..ड़.. ताड़ना चहुँ और थी||
आर पार तार तार शर्मसार चुनड़ी की कौर थी |
तानाशाही, क्रूरपन, मलेछों की सिरमोर थी||
भारत माँ के आँचल में जब अनगिनत छेद थे |
अंग्रेजों के प्रगाढ़ किल्ले जब पूरी तरह अभेद थे ||
रामायण के राम खोये थे , गीता और पुराण सोये थे |
बेबस सारे ग्रन्थ और कुरआन,सोये सारे वेद थे ||
दन..न..न..न..न..न..न.. दनदनाते आया था |
हड़..ड़..ड़..ड़..ड़..ड़..ड़..भूचालों को लाया था ||
हाँ वो सपूत वीर सुभाषचंद्र बोस ही था,
अंग्रेजों के दांतों को जिसने लोहे का चना चबवाया था !