सांड गया घुमाने अब सांड खुला है तो घूमेगा ही लेकिन जो नज़ारे देखे वो कुछ इस तरह थे !
कैसा आया अंधड़ है, अब मन की माटी बंजर है!!
क्या साधू क्या संत गृहस्थी क्या राजा क्या रानी !
सबके अर्थ अनर्थ हुए हैं करते सब मन मानी !!
सच्चा कोई मीत नहीं है प्रीत की अब कोई रीत नहीं है !
सच्चाई की जीत नहीं है प्रेम का कोई गीत नहीं है !!
धवल वस्त्र को धारण करके धरती माँ को लुट रहे !
वहशी दरिन्दे कर्णधार बन गिद्धों की नाई टूट रहे !!
देख कर अनदेखा करते अपनी भी कोई चाह नहीं!
धमनियों में पानी बहता रक्त का प्रवाह नहीं !!
सांड तेरी हृदय व्यथा का जहाँ में कोई तौल नहीं !
पशुता भली है अब जहां में इंसानियत का मोल नहीं!!
बस युं ही खुल्ले घुमते रहो
ReplyDeleteजहां दिखे हरी-हरी
वहीं चरते रहो।
कई महीनो बाद देखा, कुछ दु्बले से लगे।
जम कर चरो,जिससे सेहत बनी रहे।
सांड जी इतने गुस्से मै क्यो दिख रहे है जी, ललित जी की बात से सहमत है हम भी
ReplyDeleteसच्चा कोई मीत नहीं है प्रीत की अब कोई रीत नहीं है !
ReplyDeleteसच्चाई की जीत नहीं है प्रेम का कोई गीत नहीं है !!
धवल वस्त्र को धारण करके धरती माँ को लुट रहे !
वहशी दरिन्दे कर्णधार बन गिद्धों की नाई टूट रहे !!
bahut sundar
pasand aayi aapki rachna
badhayi
aabhaar
सच्चा कोई मीत नहीं है प्रीत की अब कोई रीत नहीं है !
ReplyDeleteसच्चाई की जीत नहीं है प्रेम का कोई गीत नहीं है !!
बहुत सुंदर...
मेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..
ReplyDeleteunique way to express your views.amazing .
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