Saturday, June 26, 2010

खुनी मंजर !!

सांड गया घुमाने अब सांड खुला है तो घूमेगा ही लेकिन जो नज़ारे देखे वो कुछ इस तरह थे !

हृदय विदारक मंजर है, हर इक हाथ में खंजर है!
कैसा आया अंधड़ है, अब मन की माटी बंजर है!!

क्या साधू क्या संत गृहस्थी क्या राजा क्या रानी !
सबके अर्थ अनर्थ हुए हैं करते सब मन मानी !!

सच्चा कोई मीत नहीं है प्रीत की अब कोई रीत नहीं है !
सच्चाई की जीत नहीं है प्रेम का कोई गीत नहीं है !!

धवल वस्त्र को धारण करके धरती माँ को लुट रहे !
वहशी दरिन्दे कर्णधार बन गिद्धों की नाई टूट रहे !!
देख कर अनदेखा करते अपनी भी कोई चाह नहीं!
धमनियों में पानी बहता रक्त का प्रवाह नहीं !!

सांड तेरी हृदय व्यथा का जहाँ में कोई तौल नहीं !
पशुता भली है अब जहां में इंसानियत का मोल नहीं!!










6 comments:

  1. बस युं ही खुल्ले घुमते रहो
    जहां दिखे हरी-हरी
    वहीं चरते रहो।

    कई महीनो बाद देखा, कुछ दु्बले से लगे।
    जम कर चरो,जिससे सेहत बनी रहे।

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  2. सांड जी इतने गुस्से मै क्यो दिख रहे है जी, ललित जी की बात से सहमत है हम भी

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  3. सच्चा कोई मीत नहीं है प्रीत की अब कोई रीत नहीं है !
    सच्चाई की जीत नहीं है प्रेम का कोई गीत नहीं है !!
    धवल वस्त्र को धारण करके धरती माँ को लुट रहे !
    वहशी दरिन्दे कर्णधार बन गिद्धों की नाई टूट रहे !!

    bahut sundar
    pasand aayi aapki rachna
    badhayi
    aabhaar

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  4. सच्चा कोई मीत नहीं है प्रीत की अब कोई रीत नहीं है !
    सच्चाई की जीत नहीं है प्रेम का कोई गीत नहीं है !!

    बहुत सुंदर...

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  5. मेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..

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  6. unique way to express your views.amazing .

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सांड को घास डालने के लिए धन्यवाद !!!! आपके द्वारे भी आ रहा हूँ! आपकी रचना को चरने!

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