Thursday, November 19, 2009

खुले सांड की हकीकत |

नमस्कार !! जैसा की नाम इंगित कर ही रहा है की "खुला सांड" कहाँ कहाँ जा सकता है !!! सो नाम को लेकर कोन्फुस मत होइए | भाई ये खुले सांड की नहीं, बात है विचारों को खोलने की बात है |
एक खुले सांड की तरह कल्पना लोक के उन्मुक्त गगन में अपने विचारों को खुला छोड़ दो, उड़ने दो जहां उड़ना चाहते हैं !
क्यों पाबंदिया? क्यों पहरे? किसी भी धर्म, किसी भी समाज, किसी भी संस्था के बारे में पढो समझो और सोचो !! दायरे क्यों धर्म के ? पाबंदियां क्यों मजहब की? क्यों जरुरत है मेरी पहचान की क्या ये काफी नहीं की मैं एक इन्सान हूँ ! न मुस्लिम, न हिन्दू, न सिख, न इसाई,| सब धर्म मेरे हैं सब मजहब को मैं पूजता हूँ|

24 comments:

  1. स्वागत है आपका । ब्लोग जगत में

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  2. स्वागत है आपका । ब्लोग जगत में

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  3. आपका स्‍वागत है ब्‍लाग जगत में, आपका भी और आपके विचारों का भी ।

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  4. आपका स्वागत है ब्लागजगत मे।टिप्पणी के लिये धन्यवाद नाम मे क्या रखा हैबस एक इन्सान होना आज कल बहुत बडी बात है। शुभकामनायें

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  5. बहुत सुन्दर स्वागत है ………

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  6. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है -
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
    बहुत बढ़िया लिखा है आपने! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!

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  7. ब्लाग जगत में सांड की बहुत जरूरत थी.......... आप आ गये अच्छा हुआ..

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  8. स्वागत है लाल लगोंट लिए कोई आता ही होगा आपके सामने सांड साहब कुछ तो हरी लिए घूम रहे हैं देखो धर्म को भी रंग से परिभाषित कर रहे हैं अब तुम आ गए हो तो शायद सुधरें मुए. तुम्हारी ज़रुरत है भाई फिर अपन तो हाथ जोड़ के स्वागत की मुद्रा में है पर गलत को इग्नोर मत करना भाई वैसे कौन हो पता तो चलजाएगा

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  9. माउनटेंन व्यू कैलिफोर्निया यूं एस से खुल्ला सांड का स्वागत है
    व्हेरिफिकेशन तो हटा लो भाई साहब

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  10. आपका स्‍वागत है मित्र, इंसान का कोई मजहब नही होता यदि वह सच्‍चा इंसान है तो।

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  11. kuchh ghaas mere blog par bhi rakhi hai,...aaiye...

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  12. kaa ji saand ji!! khulaa kisane chhod diyaa!!

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  13. उम्मीद है, कि भाग नहीं खड़े होगे :-), जिन शानदार विचारों की बात कर रहे हो उनको नमन है , मगर कायम रहिएगा , !
    शुभकामनायें

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  14. अरे कमेंट करने वाले तो खुला सांड़ नहीं हैं
    मरवाओगे तो नहीं!
    मेरे शहर में एक सांड़ बनारसी रहते हैं उन्हीं के बिरादरी के तो नहीं हो?

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  15. This comment has been removed by the author.

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  16. सांड भी तो घास खाते है :)

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  17. खुले सांड की हकीकत |
    पढ़कर मन गदगद हो गया। जितनी भी तारीफ की जाए कम है।

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  18. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है अपने विचारों की अभिव्यक्ति के साथ साथ अन्य सभी के भी विचार जाने..!!!लिखते रहिये और पढ़ते रहिये....

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  19. you are most welcome and ye to duniya ka ek anokha ajooba hai ki ye saand na sirf likha padha hai par ye computer literate bhi hai aur itni achchhi hindi jaanta hai .......

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  20. आपका स्‍वागत है ब्‍लाग जगत में, आपका भी और आपके विचारों का भी ।

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  21. great! superb! u r really a bull of freedom.Welcome

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  22. वाह क्या बात है, सांडों की वास्तव में ही बहुत आवश्यकता है, भेंसासुरों को तो लोग भगा देते हैं, डते रहना, पर गुर ये है कि---एसा सांड होना चाहिये--
    ""चक्री त्रिशूली, न शिवो न विष्णु; महा बलिश्ठो न च भीमसेन
    स्वच्छन्दचारी न न्रपति न योगी; यो जानाति सः पन्डितः ॥""
    ----नीचे लिख पते पर भी कुछ घास है-
    http://shyamthot.blogspot.com & saahityshyam

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  23. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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सांड को घास डालने के लिए धन्यवाद !!!! आपके द्वारे भी आ रहा हूँ! आपकी रचना को चरने!

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