Tuesday, November 24, 2009

लेकिन मैं खुला हूँ !!!

भई कल घूमते घूमते एक शहर की भीड़ भाड़ में पहुँच गया |
मैं अपनी सांडाई में फुला हुआ मदमस्त चाल चलता चला जा रहा था ! की अचानक कई सांड जैसी शक्ल वाले जिनावर सामने आखड़े हुए |
बोले तू कोनसा सांड है ??
मैं बोला कोनसे सांड से क्या मतलब है दिख नहीं रहा क्या?
एक सांड पास आया बोला देख हमारी बिरादरी में शामिल होजा लावारिस बनके घूमेगा कोई हमला करेगा तो अकेला क्या करेगा?
इतने में दुसरा सांड आया बोला: अबे इसकी बिरादरी में क्या रखा है हमारी बिरादरी में आ, कोई माई का लाल तेरा बाल भी बांका नहीं कर सकेगा |
इतने में तीसरा सांड आया और बोला: देख भाई तुम चाहे जिस भी बिरादरी में शामिल होना पर इतना याद रखना हमारी बिरादरी सबसे अमीर है |
मैं बोला: अबे ओ सांडनुमा जिनावारों तुम सांड नहीं तुम बैल हो कोई कोल्हू का तो कोई बैलगाड़ी वाला |
एक दूकान में रखे उत्पादन हो जिसके ऊपर ब्रांड लिखा है | जो अपनी प्योरिटी की दुहाई दे रहा है |
लेकिन मैं खुला हूँ |विचारों से मजहबी विचारों से | धर्म की दीवारों से स्वतंत्र हूँ और तुम से भी कहता हूँ की छोड़ दो ये मजहबी दायरे जो हमने ही बनाए है| जो जीवन को सुन्दर तरीके से जीने के लिए बनाए गए थे ना की आत्मा को रक्त रंजित करने के लिए| मैंने मेरी बात कहदी तुम्हे अछि लगे रखो ना लगे वापस करदो |

6 comments:

  1. भाई सांड बात तो सही कही है तुमने |
    वैसे जानकारी के लिए बता रहा हूँ जोधपुर में कई परिवार है जिनके नाम के आगे टाइटल सांड ही लगता है | उनमे एक गणपत जी सांड बहुत बड़ी कपडे की मील के मालिक है |

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  2. लेख ते मज़ेदार है ही ये भी मुझे अच्छा लगा--
    सांड को घास डालने के लिए धन्यवाद !!!! आपके द्वारे भी आ रहा हूँ! आपकी रचना को चरने!

    तो ,लो भैय्या घास डाल दिया पेट न भरे तो चर लेना आकर।

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  3. आज जाना कि सांड़ को अक्ल होती है
    वह भी आदमी से ज्यादा
    वाह!

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  4. kal raat ek bachhade ko marne se bachaayaa tha
    badaa ho ke vo saand banegaa
    jyotish se puchha vrishabh raashi se janme is bachhade ka bhavishy kya hogaa ?
    jyotishi ne bataayaa : badaa hoke saand banaane ki jyaadaa sambhawanaa hai bail nahi bane to achchha.
    maine poocha vajah kya ? kyon na banaaye bail.
    kahne lage : shrimaan car ka jamaanaa aayaa. bail banake kya milega.
    ham soch me pad gaye aur jyotish ko kahaa ji kyaa aap bhavishy bataa rahe hai yaa vartmaan paristhiti ka bakhaan kar rahe hai.
    itne me shrimaa khulle saand padhaar gaye, bhoosa kahte khayenge nahi, naha dhokar perfume lagaayenge nahi , badi boori lat padi hai anaap shanaap kkha kar dakaanrne ki . jahaan jaaye badbu failaane ki. itne me miyaa mirchi aa gaye aur haay ri takdeer bechaare bachhde ka sauda pataa gaye.
    kal bajrang daliyon ne gaadi roki to samajh aayaa ki ve boochad khaanaa jaane se bach gaye

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  5. दायरे बनाने की कोई वजह नहीं, ना ही इंसान को दायरों में रहना चाहि‍ये, सांड भी तो यही सि‍खाता है ना।

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  6. यह सांड बहुत ही गुंणी है………………बहुत अच्छी अच्छी बातें करता है । अब तो रोज आना पड़ेगा । पर सांड भी थोड़ा नियमित रहे तो अच्छा है वरना यहा लोगों को भूलते समय नहीं लगता ।

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सांड को घास डालने के लिए धन्यवाद !!!! आपके द्वारे भी आ रहा हूँ! आपकी रचना को चरने!

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