Saturday, January 16, 2010

क्या फ़ालतू की बात करते हो!!!

(बुरे खयालात और अच्छे ख्यालात में जंग होने लगी तो कुछ टूटता फूटा लिख डाला)

फुरसत नहीं मोहब्बत करने से |
आप नफरत करने की बात करते हो||
पाक ख़यालों की सोहबत से फुर्सत नहीं|
द्वेष को आप आत्मसात करते हो||

तोड़ने की कोशिश में हूँ मजहबी दायरे |
आप दरो दीवार की बात करते हो||
मशगुल हूँ मैं दिलों के जख्म सीने में|
आप चाके दिल करने बात करते हो ||

मैं चैनो अमन का पुजारी हूँ|
आप हुडदंग करने की बात करते हो||
मैं मेल मिलाप की बात करता हूँ|
आप हमेशां अलगाववाद करते हो||

आप हमेशां खुनी खंजर लिए फिरते हो|
इंसानियत पर आघात करते हो||
तुम किसी मजहब के नहीं फिर भी,
ना जाने कौन से मजहब की बात करते हो||

8 comments:

  1. इतना अच्छा लिखोगे ना खुला सांड भाई साहब, तो लोग फिर आपको प्रेमचंद का बैल कहने लगेंगे।
    हा हा लाजवाब लिखा है।

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  2. वाह-वाह , क्या कहा है आपने , लाजवाब ।

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  3. यह लो भाई आज तो हम भी हरी हरी घास ले कर आये है इनाम मै इस अति सुंदर रचना के बदले

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  4. ... behad prabhaavashaali abhivyakti !!!!!

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  5. आजकल आप कहाँ विचर रहे हैं ? मेरा दिया घांस भी नहीं चर रहे हैं.
    मैं आया तो मुझे भी वही पुराना वाला खिला दिया.

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  6. खुला सांड क्या गहरी बातें कहता हैं।

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  7. wah wah koi shabd nahi hai kahne ko suparbbbb....

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सांड को घास डालने के लिए धन्यवाद !!!! आपके द्वारे भी आ रहा हूँ! आपकी रचना को चरने!

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