(बुरे खयालात और अच्छे ख्यालात में जंग होने लगी तो कुछ टूटता फूटा लिख डाला)
फुरसत नहीं मोहब्बत करने से |
आप नफरत करने की बात करते हो||
पाक ख़यालों की सोहबत से फुर्सत नहीं|
द्वेष को आप आत्मसात करते हो||
तोड़ने की कोशिश में हूँ मजहबी दायरे |
आप दरो दीवार की बात करते हो||
मशगुल हूँ मैं दिलों के जख्म सीने में|
आप चाके दिल करने बात करते हो ||
मैं चैनो अमन का पुजारी हूँ|
आप हुडदंग करने की बात करते हो||
मैं मेल मिलाप की बात करता हूँ|
आप हमेशां अलगाववाद करते हो||
आप हमेशां खुनी खंजर लिए फिरते हो|
इंसानियत पर आघात करते हो||
तुम किसी मजहब के नहीं फिर भी,
ना जाने कौन से मजहब की बात करते हो||
इतना अच्छा लिखोगे ना खुला सांड भाई साहब, तो लोग फिर आपको प्रेमचंद का बैल कहने लगेंगे।
ReplyDeleteहा हा लाजवाब लिखा है।
वाह-वाह , क्या कहा है आपने , लाजवाब ।
ReplyDeleteयह लो भाई आज तो हम भी हरी हरी घास ले कर आये है इनाम मै इस अति सुंदर रचना के बदले
ReplyDeleteलाजवाब।
ReplyDelete... behad prabhaavashaali abhivyakti !!!!!
ReplyDeleteआजकल आप कहाँ विचर रहे हैं ? मेरा दिया घांस भी नहीं चर रहे हैं.
ReplyDeleteमैं आया तो मुझे भी वही पुराना वाला खिला दिया.
खुला सांड क्या गहरी बातें कहता हैं।
ReplyDeletewah wah koi shabd nahi hai kahne ko suparbbbb....
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