गड़..ड़..ड़..ड़...ड़..ड़..ड़.. गर्जना घनघोर थी|
तड़..ड़..ड़..ड़..ड़..ड़..ड़.. ताड़ना चहुँ और थी||
आर पार तार तार शर्मसार चुनड़ी की कौर थी |
तानाशाही, क्रूरपन, मलेछों की सिरमोर थी||
भारत माँ के आँचल में जब अनगिनत छेद थे |
अंग्रेजों के प्रगाढ़ किल्ले जब पूरी तरह अभेद थे ||
रामायण के राम खोये थे , गीता और पुराण सोये थे |
बेबस सारे ग्रन्थ और कुरआन,सोये सारे वेद थे ||
दन..न..न..न..न..न..न.. दनदनाते आया था |
हड़..ड़..ड़..ड़..ड़..ड़..ड़..भूचालों को लाया था ||
हाँ वो सपूत वीर सुभाषचंद्र बोस ही था,
अंग्रेजों के दांतों को जिसने लोहे का चना चबवाया था !
सच मे वे वीर सपूत ही थें ।
ReplyDeleteहाँ वो सपूत वीर सुभाषचंद्र बोस ही था,बिलकुल सच
ReplyDeleteनेताजी सुभाष चन्द्र को सच्ची श्रद्धांजलि...
ReplyDeleteकदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा ......... जय हिंद ...नेताजी सुभाष चन्द्र को सच्ची श्रद्धांजलि......... तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा .........
ReplyDeleteअवश्य पढ़िए:- "जियाउद्दीन के रूप में नेताजी" लेखक श्री उत्तमचंद मल्होत्रा.
ReplyDelete१९३९/४० में नेताजी कलकत्ता में अंग्रेजों की कैद से भेस बदल कर भाग अफगानिस्तान के रास्ते से जेर्मन सहायता पाने के लिए जर्मनी गये थे . शेर पिंजरे से भागा था. अँगरेज़ हैरान थे. अफगानिस्तान में बिना किसी की मदद के यह सम्भव न था.अफगानिस्तान में देश पर न्योछावर होने वाले एक भारतीय व्यापारी देशभगत उत्तमचंद मल्होत्रा की सहायता पाकर ही यह संभव हो सका. उत्तमचंद मल्होत्रा का यह सहायता करना अति जोखिम का काम था.नेताजी की सहायता करने के पश्चात् उन्हें अंग्रेजों के कोप का भागी होना पड़ा, उन्हें कई वर्षों का कारागार का दंड भुगतना पड़ा. मल्होत्राजी ने अपने उस साहस भरे कार्य को "जियाउद्दीन के रूप में नेताजी" पुस्तक लिख कर देश में खलबली मचा दी.
bahut sahi likha hai
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